ईरान पर ट्रंप का हमला: ‘शांति-दूत’ से युद्ध नेता तक का सफर

गौरव त्रिपाठी
गौरव त्रिपाठी

जनवरी 2025 में जब डोनाल्ड ट्रंप ने फिर से अमेरिका की कमान संभाली, तो उन्होंने खुद को ‘शांति-दूत’ कहा। उन्होंने वादा किया था कि अमेरिका को विदेशी युद्धों से दूर रखा जाएगा। लेकिन अब वही ट्रंप अमेरिका को ईरान और इसराइल के बीच के संकट में झोंकते दिख रहे हैं।

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ईरान पर हमले की घोषणा और ट्रंप का संदेश

शनिवार को ट्रंप ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हमले का आदेश दिया। महज़ दो घंटे बाद, व्हाइट हाउस से दिए गए अपने राष्ट्र के संबोधन में उन्होंने इस कार्रवाई को ‘शानदार सफलता’ बताया और दावा किया कि इससे क्षेत्र में स्थायी शांति का रास्ता खुलेगा।

हालांकि ईरान ने कहा कि उसका फोर्दो ठिकाना सुरक्षित है और सिर्फ मामूली नुक़सान हुआ है।

ट्रंप की चेतावनी: ‘यह तो शुरुआत है’

ट्रंप ने अपने संबोधन में चेतावनी दी कि अगर ईरान ने परमाणु कार्यक्रम नहीं रोका, तो अमेरिका के अगले हमले “कहीं ज़्यादा तेज़, सटीक और विनाशकारी” होंगे। उनके साथ खड़े थे उप-राष्ट्रपति जेडी वेंस, विदेश मंत्री मार्को रुबियो और रक्षा मंत्री पीट हेग्सेथ—यह साफ संकेत था कि अमेरिका एक संगठित सैन्य कार्रवाई के लिए तैयार है।

ईरान की प्रतिक्रिया और संभावित खतरे

ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली ख़ामेनेई पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि अमेरिकी हमला हुआ तो जवाब ज़रूर मिलेगा। इस हालात में जवाबी कार्रवाई तय मानी जा रही है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने चेतावनी दी है कि अगर तनाव और बढ़ा, तो यह पूरी दुनिया के लिए अराजकता का कारण बन सकता है।

राजनीतिक असर: ट्रंप के ‘अमेरिका फर्स्ट’ सिद्धांत पर सवाल

इस हमले ने अमेरिकी राजनीति में भी भूचाल ला दिया है। डेमोक्रेट्स तो आलोचना कर ही रहे हैं, लेकिन ट्रंप के अपने समर्थक भी अब असहज हो उठे हैं। क्या यह हमला सिर्फ एक ‘शो ऑफ फोर्स’ था, या अमेरिका किसी बड़े युद्ध में प्रवेश कर चुका है?

क्या ट्रंप ने कूटनीतिक विकल्पों को नज़रअंदाज़ किया?

ट्रंप ने ईरान को दो हफ़्तों की डेडलाइन दी थी, लेकिन हमले सिर्फ दो दिन में हो गए। क्या पर्दे के पीछे चल रही बातचीत विफल हो गई? यह सवाल भी अब गूंजने लगा है।

आगे क्या? युद्ध या समझौता?

ट्रंप चाहते हैं कि ईरान अब दबाव में बातचीत की मेज़ पर आए। लेकिन जानकार मानते हैं कि यह सोचना बहुत आशावादी है। इसराइल और अमेरिका के हमलों के बाद ईरान अगर बातचीत करे, तो वह अपनी ताक़त का नुकसान मानेगा।

इतिहास खुद को दोहरा रहा है?

डोनाल्ड ट्रंप अपने पहले कार्यकाल में युद्ध न करने वाले राष्ट्रपति के रूप में गर्व करते थे। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। अब देखना यह होगा कि क्या वह अपने इस नए रास्ते से अमेरिका और दुनिया को सुरक्षित रख पाएंगे या नहीं।

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